बुद्ध का भारत, बुद्धों का भारत अर्थात सनातन आत्मा का भारत, परमात्मा परम प्रकाश,परम आनंद का भारत और यह “सिद्धार्थ” के जीवन का सौभाग्य कि वो अपने दिव्य कर्म भाव से बुद्धों के भारत मे प्रवेश किया………
यह मेरे जीवन का भी सौभाग्य कि हमारे परम आराध्य, परम पूज्यनीय सदगुरुदेव “परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद” की असीम अनुकम्पा से बुद्धों के भारत, सनातन दिव्य आत्मा, जीवन के परम आनंद परम प्रकाश, परमात्मा परम प्रकाश, में प्रवेश हुआ….….
हम कृतज्ञ है अतीत, वर्तमान और भविष्य के बुद्धों का भी जिनकी परम ऊर्जा का सानिध्य साहचर्य और संदेश हमे प्राप्त होता रहता है, शाश्वत सनातन संदेश जगत के कल्याण के लिए हमे प्राप्त होता रहता है, सौभाग्यशाली हैं हम कि सनातन भारत का हिस्सा बन शाश्वत संदेश भारत को प्रसाद स्वरूप दे शाश्वतता की पुकार में हर पल संलग्न है, बुद्धो को आत्म नमन,अर्पण समर्पण…….
आज बुद्ध पूर्णिमा है, बुद्ध की पुकार है, बुद्ध का संदेश है, बुद्ध की दीक्षा है कि तुम भी पूर्ण हो जाओ, तुम भविष्य हो भारत के सनातन यात्रा की, जीवन के परम आनंद की खबर हो तुम, आओ आ जाओ……..
बुद्ध की पहली दीक्षा- “बुद्धं शरणं गच्छामि” अर्थात जागे हुए की शरण जाओ, बुद्ध की शरण जाने का मतलब गौतम बुद्ध की शरण नही बल्कि जागे हुए की शरण जाना है। बुद्ध से किसी ने पूछा कि आप सामने बैठे हैं और कोई आकर कहता है कि- “बुद्धं शरणं गच्छामि” और आप सुन रहे हैं तो बुद्ध ने कहा कि वह मेरी शरण नही जा रहा, वह जागे हुए की शरण जा रहा है, में तो एकमात्र माध्यम हूँ, मेरी जगह और बुद्ध होते रहेंगे, मेरी जगह और बुद्ध हुए हैं, मैं तो एक माध्यम हूँ। वह जागे हुए की शरण जा रहा, बुद्ध होश की शरण, वह बुद्ध जागे हुए की शरण होश पूर्ण अपने आपको समर्पित कर रहा है, बुद्धं शरणं गच्छामि……
बुद्ध की दूसरी दीक्षा- “संघं शरणं गच्छामि” अर्थात बुद्धों के संघ में जा रहा है, वह बुद्धों की शरण जा रहा है अर्थात जागे हुए का संघ, जो बुद्ध जागे हुए हो चुके हैं, जो बुद्ध जागे हुए हैं, और जो बुद्ध अभी भविष्य में होंगे, उन सबका संघ, उनकी शरण मे जाओ, बुद्धों के संघ की शरण मे समर्पण- “संघं शरणं गच्छामि”…….
बुद्ध की तीसरी दीक्षा- “धम्मं शरणं गच्छामि” अर्थात में धर्म की शरण जाता हूँ, पहला जो जागे हुए बुद्ध हैं उनकी, दूसरा जो बुद्धों का जगा हुआ संघ है उनकी, और तीसरा जो जागरण की परम अवस्था है- “धर्म” स्वभाव, जहाँ न व्यक्ति रह जाता है, जहाँ न संघ रह जाता है, जहाँ सिर्फ “धर्म” राह जाता है, मैं उस धर्म की शरण जाता हूँ, सर्वस्व समर्पण, स्व शिष्यत्व शिवत्त्व परम आनंद की उपलब्धि…….
और फिर अंततः बुद्ध का आखिरी संदेश- “अप्प दीपो भव” ! अर्थात तुम अपने दीपक खुद बनों, अपने दिए खुद प्रज्ववलित कर लेना, अपने प्राण आत्म प्रकाश के खुद साक्षी बन जाना, मैं तुम्हारा प्राण, आत्मा, परम प्रकाश हूँ, तुममें ही समाहित हूँ, आखें बंद कर स्वसों के सजग प्रहरी बन, प्राण में प्रवेश कर, अपनी आत्म दीप को प्रज्वलित कर लेना ही मुझ भगवत्ता बुद्ध, बुद्धों,संघ धर्म की शरण जाना है, जीवन को सम्पूर्ण कर अमरता को प्राप्त कर लेना है, सनातन भारत की यात्रा का हिस्सा बन शाश्वत संदेश को पा पान कर सदा के लिए अमर हो जाना है……..
आज बुद्ध पूर्णिमा के इस पावनतम दिव्यतम पर्व पर मैं असीम अनंत शुभकामनाएं और शुभाशीष देता हूं कि आप का भी जीवन पूर्ण हो जाए…….
~ ब्रह्म स्वरूप स्वामी कमलेश्वरानंद जी